जला कर एक दिया फलक ने चाँद बुझा दिया
भँवरों को चूम लिया गुल ने तो बाग़बान भुला दिया
दीवाली की मावस तो दफ्तर में रहे हम
रात पूनम की लौटे घर तो माँ ने दिया जला दिया
वो बगीचा जहां ज़माने से मोहब्बत छुपाते थे कभी
हमारी नफरत की चिंगारी ने पूरा गुलिशतां जला दिया
घर की सफाई में आज फिरसे दादी मिली हैं
उनकी खटिया की जिसपे मक्खी ने छत्ता बना दिया
आधा शेर, सूखे गुलाब, बड़े दिन जले है "राम"
बहा कर वो मतले मुक्तों ने पूरा दरिया जला दिया!
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