मचा है कोहराम, पर हर शख्स मौन है,
ना जाने मेरे मुल्क में, ये रहता कौन है।
देखते हैं दरिंदगी, तो फेर लेते है नज़रें,
पत्थर हैं, इंसान इन्हें कहता कौन है।
है मुफ्त की बिरयानी, हर एक थाल में,
मेहनत-कशी की दाल, पकाता कौन है।
तनहा है हर शख्स, यहाँ लोगों की भीड़ में,
रिश्ते रोज़ ही बनते हैं, निभाता कौन है ।
क्यों आलाप लगा रहा हूँ, बेहरों के कान में,
आवाज़ से मेरी आवाज़ मिलाता कौन है..
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