हम भी गुम हो जाते, बचपन में
इक ऐसे सायें के साथ,
थे, जब कक्षा-3 में, आया इक साया पास,
आकर कहता है, स्कूल चलों तुम
हम लेकर जाएगे हमारे साथ
माँ थी, अनजान बहुत तब,सोचा
स्कूल से आये होंगे, मना किया था ,उन्होने
हम ही जिद पर अड़े थे, क्योकि शायद सपने कुछ बड़े थे
ना मालूम हमें था, उस मानव रूपी भेष में राक्षस खड़े थे।
हम निकल पड़े मस्ती में, वो बचपन था
जो सामने था, हमारे, उसमें राक्षसपन था।
जब देखा हमको जाते, चाचा ने आवाज लगाई
क्यों ले जा रहें हो , भाई
देखा तो स्कूल नजदीक थी, जाकर पूछताछ कराई
तब पता लगा स्कूल पर, ताला था
और नही किसी ने स्कूल लाने की आवाज हमको लगाई
वो बहरूपिया जान गया था, अब मार पङेगी भाई
उसने फेक स्कूटर, से हमे, भागकर ,जान खुद की बचाई।
वो राक्षस था, हैवानीयत थी, शायद उसपे छाई
पर हम बच गये थे, यह बात अब समझ आई।
-