Nazm-e-zindgi
टूट कर बिखरना,अंधेरे की गहराई को देख लिया,लेकिन
"उम्मीद"की किरण लिए खुद को संभलता देख लिया
ज़िन्दगी-ए-ख़ास सितम झेल,खुद से जीना सीख लिया,लेकिन
"ग़ज़ल"के रूप में ज़िन्दगी का अफसाना खुद ही लिख लिया
दुनिया का देखा बदलता रंग,दिल-ए-ज़ख्म खा लिया,लेकिन
"चमक" सा भरा सितारा मेरी झोली में भी आ समा गया
कत्ल करता जमाना,हराने की कोशिश करता रहा,लेकिन
"लब्ज़"में सादगी पा कर,गैरों को भी अपना बना लिया
आंख चाहे नम हो जाए,हंसी के गीत गाना सीख लिया,इसलिए
गम के साथ मुस्कराने का नाम "नज़्म-ए-ज़िन्दगी"रख लिया
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