और वो शर्मीली लडकी अब बेझिझक बिना शर्म के लिखती है खुलकर आखिर कागज को कहाँ खबर है स्याही मे भरे हुए शब्द सब उसके चरित्र ने गढे है वो रंग वो छंद कविता का हर एक अंग खुद जो रचती है हाँ वो चंद्र की उपासना करती है वो जो हर रात को आसमान से बात करती है वो जो लोगो के खामोश होंटो के नीचे की बात पढती है वो जो औरों के मन के दर्दों को भी समझती है वो जो गिर कर उठती है तो समुद्र मे भी लहरे उमंग की उठने लगती है वो रोशनी है खुद मे ही और उसके लेखन मे प्रकाश है निहित