प्रेम करना आसान है या लिखना
ये द्वंद चरम सीमा पे है
उसकी मुस्कान को देखते
मेरी कल्पनाओं का ठहराना
तंत्रिकाओं में प्रेम का आवेग होना
दबी हुई मुस्कान में उसको छुपाना
अचानक से उसकी यादों में घबराना
वो गुदगुदी वो सरगर्मी वो थरथराहट
वायु के स्पर्श में उसके होने की आहट
सैकड़ों की भीड़ में बस उस एक शक्स का दिखना
सपनों में ठिठोली कर .... सामने से छुपना
तकिए के आलिंगन से उसके बाजुओं में समाना
बंद कर के आंखों को उसके प्रेम स्पर्श को पाना
द्वंद संवाद सब मिटा के
मैं प्रेम लिख के करना चाहती हूं
ताकि वो पढ़ सके
मेरी आंखों के पुतलियों में ठहरी उसके इंतजार को
देह के हर एक उभार मे उसके प्रेम की पुकार को
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