ज़िंदगी में कोई मज़ा नहीं
मगर ज़िन्दगी ये सज़ा नहीं।
आपको रहा करते हैं ढेरों ग़म
आपने कभी हमसे कहा नहीं।
मुफ़लिसी से बढ़के कुछ नहीं
कौन से ग़म है जो सहा नहीं।
हम रहे दूर आपसे हरदम
मगर दिल कभी दूर रहा नहीं।
इश्क़ करते हैं चुप भी रहते हैं
अजीब लोग, कभी कहा नहीं।
इंसानियत को मजहब समझो
इससे बढ़कर कोई जज़ा नहीं।
किसी के काम गर न आ सके
ज़ीस्त से बढ़कर कज़ा नहीं।
ग़ज़ल मुकम्मल करो तो "रिया"
देरी करना अब बजा नहीं।
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