सैनिकों के काव्यों में आप वीर रस से उत्साहित हो जाते हैं लेकिन उस वीर रस का आधार प्रेम है।
जब सैनिक,मां,पिता,पत्नी, बच्चे दोस्त; मोह को त्यागकर प्रेम को अपनाते हैं तभी एक इंसान सैनिक बनता है। मोह त्यागकर प्रेम पथ पर चलना साधारण बात नहीं। इसलिए ही हम वीर सैनिकों के साथ उनके परिवार जनों को भी शीश झुकाते हैं।
चाहे न जाना मन्दिर, न जाना मस्जिद,
चाहे न जाना गुरुद्वारा, न जाना गिरिजाघर,
चाहे न जाना काबा, न जाना चारोंधाम,
गर जाना किसी सैनिक के घर...|2|
तो झुककर करना एक प्रणाम।
जब सैनिकों ने विक्रम परिचय दिया था,
जब बत्रा ने ये दिल मांगे मोर कहा था,
जब कारगिल को अपने लहू से सींचा था,
तब 26 जुलाई विजय दिवस कहलाया था।
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