मेरी अंतिम अभिलाषा
मैं रहूं या ना रहूं,
तुम मेरी
कविताओं का मंचन,
किसी कवि से मत कराना।
किसी संध्या में
जब सूर्य अपनी
किरणों को समेट कर
पूरे क्षितिज को
अपनी लाली से भर दें,
तुम मेरे कुछ कविताओं पर
अपने हाथों से स्पर्श कर देनाI
और उनमें से कुछ
पंक्तियों को तुम गुनगुना लेनाI।
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