गर मिलोगे कभी तो तुमसे क्या कहूँगी अजनबी कहूँगी या तुम्हें तुम्हारे नाम से पुकारूंगी बहुत सी बातें सोच रखी थी पर वो आधी बात भी मैं पूरी नहीं करूंगी तुम संभाल लेना जो मैं जजबात में बहूँगी ले लेना किसी गैर का नाम गर मैं तुमसे मोहब्बत है कहूँगी थोड़ी मोहलत देना बहुत कुछ कहना है तुमसे यार यूं चंद पलों में तुमसे नफरत कैसे करूंगी