मेरे दर्द की खबर किसी को ना होगी.. मुझमें कला है दर्द छुपाने की खुशी का मुखौटा बहुत आसानी से ओढ़ लेती हूं.. आज भी खिलखिलाती आवाज में अपनी सिसकती आवाज को दबा लेती हूं।
ज़माने की नज़र में हम खुदगर्ज़ ही सही, अपनों की नज़र में हम मतलबी ही सही, मगर मेरी माँ की नज़र में, और हाँ अपनी नज़र मे हम खुश है, इत्मीनान है, न ज़रूरत किसी की.. हम खुद ही खुद में अबाद है ....
तुमको तो सायद मेरी जरूरत ही नहीं थी, और मुझे देखो खामोखां अपना जींदेगी बरबाद कर ने चली थी.....। ये तो अच्छा हुआ कि मै वक़्त से पहले ही जान ली, और खुद को खुद खुद से दूर होने से बचा ली......। तुम्हारे तो आदत है दूसरों की भावनाओं के साथ खेलना, और मै भी पागल उसी को ही तुम्हारा प्यार समझ बैठी थी...........!!!!!!!