मै नारी हूं, महिमा का प्रतीक हूं,
दुर्गा मानकर पूजते है मुझे फिर क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा?
16dec 2012को में निकली थी काम से, मिल गए कुछ हैवान, देंवान थी उनकी नियत, दिखने में हम जैसा था,
एक मेरी भाई की उम्र का,एक मेरे बाबा के उम्र का,
उनकी नजर मेरी जिस्म पर थी, किस्म किस्म की बाते करता, कभी बाहों में खींचता तो कभी मेरे अंगो को सहेलाता ! बहेलता! फुसलाता!
और न जाने क्या क्या किए जाता! बर्बरता का पुजारी था! बाबा तेरे परी को उस हैवान ने गालो पर थप्पड़ खींचा था , खींच कर बालों को घसीटा था ज़मीन पर, फिर एक हाथ रखा मेरे मुंह पर और दूसरा मेरे जिस्म पर, खींच कर दुप्पटा मेरा, टूट पड़ा मेरे जिस्म पर, मैं चीखती चिल्लाती रही! मां को भी आवाज़ लगाई!|
बाबा एहेसास नहीं हुआ क्या आपको आपकी बेटी पर संकट अाई थी!
हुआ है क्या नारी का सम्मान किसी भी युग में?
एक हार गई जुएं में और एक को गुजरना पड़ा अग्निपरीक्षा से !
सीता भी रो पड़ीं और कहा उन्होंने धरती मां से,
अपनी शरण में लेलो मां,
मेरा ना हुआ सम्मान यहां!
मर्यादा परुषोत्तम श्री राम भी नहीं कर सके इंसाफ मेरा!
ठंड पड़ गई शव मेरी,
फिर भी उनका बर्बरता जारी था,
मेरी शव को भी उन दरिंदो ने
हवस कि भाती नोच नोच कर खाया था !
मेरा इंसाफ करना मां,
मै जा रही हूं दूर बहुत!
नहीं हुआ है मेरा सम्मान यहां
नहीं हुआ है मेरा सम्मान यहां|
-