विनम्र निवेदन!
जब तक मैं सलवार - कमीज में थी, चरित्रवान थी।
लेकिन जिस दिन कपड़ों का माप छोटा हो गया
लोगों की सोच ने भी छोटा होना बेहतर समझा।
किसी ने कहा- "बदन ढकना नहीं जानती, संस्कार क्या जानेगी? "
किसी ने कहा-"अपने पिता से, अपने भाई से शर्म नहीं?
बेशरम! ढंग के कपड़े पहन ले, गली में जवान लड़के है।"
ऐसी सोच रखने वालों सादर प्रणाम!
हो सके तो उस दुकान का नाम बताना
जहां संस्कार की फैक्ट्री में बने संस्कारी कपड़े बिकते हो।
और हां! माफ करना इस खोटी सोच ने मेरे घर पर जन्म नहीं लिया कि
मुझे मेरे पहनावे से तोला जाये।
घर के आदमी जब छोटे कपड़े पहने तो क्या पिता ने कभी ये कहा-
" मां से, बहन से शर्म नहीं?
बेशरम! ढंग के कपड़े पहन ले, गली में जवान लड़कियां है।"
अगर नहीं। तो विनम्र निवेदन!
विचार साफ रखिए।
नज़रिया साफ रखिए।
जब ख़ुद को छोटे कपड़ों के तराजू में तोलते नहीं।
तो लड़कियों को भी ऐसी सोच की ज़रूरत नहीं।
विचारों का मान रखिए।
दर्जा भी समान रखिए।
सलीका मत सिखाइए कपड़े पहनने का।
हक़ हर किसी का समान है जीने का।
कपड़े देख कर किसी के संस्कार/चरित्र/योग्यता का आंकलन मत कीजिए।
कृपया सोच का मैलापन दूर कीजिए।
विनम्र निवेदन!
आदमी हैं तो लड़कियों के कपड़ों के चयन का सम्मान कीजिए।
औरत हैं तो औरत हो कर उसके इस चयन का अपमान मत कीजिए।(गीतिका चलाल) @geetikachalal04
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