उनकी बातों में मैं जिक्र बनके रहूंँगा... उनकी आंखों में मैं फिक्र बनके रहूंँगा... मेरी मोहब्बत इस तरह मुकम्मल होगी यारों... कि मैं ताउम्र उसके कब्र पर फूल बनके रहूंँगा... - Maya Mallah
माजरा क्या है, महफ़िल ए मयखाना, ग़मगीन है साक़ी, जेबा नहीं साकीकी खुशामद लेकिन मुतमईन है साक़ी, गज़ब, कहीं सागर लबालब हैं तो कहीं खाली हैं पयाले, भला यह कैसा दौर है साकी, ये क्या तकसीम है साक़ी..
क़ल्ब -ए-ज़ब्त रखते हैं तेरी याद आये तो पर ज़िक्र निकले तो फिर जी संभलता ही नहीं... . तेरे औसफ़ भी हम ग़ैरों की ज़बानी सुना करते हैं तू रकीब़ों की तरह हमसे अब मिलता ही नहीं..