मेरा धड़ नहीं, मेरा सर नहीं,
माना लौटा मैं पूरा घर नहीं,
पर यह देश, मेरा अड़िग यूँ ही रहे सदा,
तो क्या हुआ, जो अब मैं गर नहीं,
भारत माँ का कर्ज, यूँ अदा हुआ,
अब कोई बौझ, है इस सीने पर नहीं,
मुझ जैसे और भी कई, शुरबीर हैं,
इन काफिरों से, तू हमसे लड़ नहीं,
अब बदला मेरे, लहू का कुछ यूँ होगा,
इस धरा पे आएगा, कहीं तू नज़र नहीं...!
-