कुछ ऐसा चढ़ा मुझ पर, अब उतरता ही नहीं, तुम साथ हो तब तक ठीक है, तुम गयी तो लगेगा कोई साथ नही, तेरे ईश्क का रंग ऐसा है ओ प्यारी, दूसरा कोई रंग और चढ़ता नही,
इश्क़ में अक्सर लोग ईमान भूल जाते है महबूब के आगे अपनी पहचान भूल जाते हैं। है एक प्यारा एहसास ये इश्क़ मगर कुछ दिमाग वाले लोग दुनिया में ऐसे भी हैं जो इश्क़ के नाम पर दिल से खेल जाते है एहसासों को मुस्कुरा कर तोड़ जाते है। फिर इतना ही रह जाता रूह की मोहब्बत में जिसने किया वो जिंदा तो रहते है पर प्यार का एहसास भूल जाते है। लोग महबूब के लिए मां बाप से लड़ जाते है और हम इस बात की खुशियां मानते हैं की उसने अपने महबूब का साथ निभाया है हम उनसे पूछना चाहते है कौन है ये लोग जो इश्क़ के नाम पर अपना पहला इश्क़ मां को ठुकरा आए हैं वो तुम्हारे लिए किस मुंह से वफा का सौदा लाए हैं अगर सच में इश्क़ है तो मां से मिलिए उसने तुम पर अपनी जवानी लुटाई है बाप ने अपना कंधा झुकाया है और तू चंद सालों के लिए बचपन के प्यार को ठुकरा कर आया है।