मज़बूती की झंकार,
थिरकतीं जिसके मन में,
स्वस्थ रूपी पेड़,
पनपे उसके तन में |
पहनकर आलस का चोला जो आगे बढ़ता हैं।
दूसरों को देख विजय,
जो बस हाथ ही मलता हैं।
छोटासा है जीवन,
इसमें कुछ काम बड़ा तू कर्जा।
पूजा से कही अधिक बड़ा है,
अच्छे कर्मो का दर्जा।
राजपूत हो, या दलित, कर्मो से बन बड़ा,
ये फालतू भेद भाव करने वाले कल भी थे,
देख आज है क्या कोई खड़ा ।
लोग कहते है,
अब समाज बदल गया है, यहाँ अब भेद भाव नही है होता,
सच छुपा और कान बंद कर तू कब तक रहेगा सोता ।
सीधा सा सरल बात है,
जरुरत ही क्या है धर्म,
जात या पहचान की,
बिन इसके भी तो बन सकते हो,
तुम वजह किसी के मुश्कान की ।।।🔥🔥
{ Discrimination is a hellhound that gnaws at Negroes in every waking moment of their lives to remind them that the lie of their inferiority is accepted as truth in the society dominating them and Discrimination is not liberal. Arguing against discrimination is not intolerance.}
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