कभी यूँहीं मन विचलित सा हो जाता, जब जेहन में 'क्यों के जवाब' का तूफान सा उठ जाता! क्यों इम्तिहानों में यह पूछा नहीं जाता! क्यों इंसान की मजबूरियाँ हीं उसे रूलाता! क्यों ये जहान इंसानियत को बेच खाता! क्यों इस दुनिया में भावनाओं का कोई मोल नहीं रह जाता! क्यों झूठे धर्म रिवाजों का चश्मा पहना जाता! क्यों दिनभर की मजदूरी के बाद नसीब में दो सुखी रोटी हीं रह जाता! क्यों बेटी का पिता सुकून की नींद नहीं सो पाता! क्यों किसी के सच को नकाबपोशी के झूठ से ढ़का जाता! क्यों तमाम अरमानों को बंद दरवाजों में कुचला जाता! क्यों बेगुनाहों को बेड़ियों में जकड़ा जाता! आखिर क्यों ये सोच-सोच कर दिल घबराता! आखिर क्यों इस 'क्यों का जवाब' नहीं मिल पाता!!