क्या मेरे हिज़्र की खामोशी तुम्हें भी तड़पाती है?
क्या हर मुख्तसर चीज़ तुम्हें, मेरी याद दिलाती है?
क्या मेरा अल्हड़पन तुम्हारे खयालों की पटरी पर रेल चलता है?
क्या मेरा इंतखाब तम्हें भी अकेलेपन में हंसाता और रुलाता है?
दिल इतरा रहा है कि कोई मेरे लिये भी तरसते हैं!
मेरे खुशी और गम के आँसू उनकी आँखों से भी बरसते हैं।
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