QUOTES ON #INSTAWRITING

#instawriting quotes

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2 APR 2017 AT 18:27

ऊपरवाले, कुंती का क्यूँ ऐसा भाग्य बनाया?
पाण्डवों और कर्ण में क्यूँ इतना अन्तर छाया?
दुर्योधन का ऋण सर पे कुछ ऐसे चढ़कर आया,
कि कुरुक्षेत्र में कर्ण ने भाइयों पे बाण चलाया।

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15 FEB 2017 AT 14:20

I wish I'd known or understood better
when they'd freed me from my fetters,
but hung my head and whispered to me,
"You weren't, you aren't, won't ever be free."

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9 APR 2017 AT 14:45

थर्मामीटर में हाई तापमान दे गया,
बिस्तर पे कुछ दिन आराम दे गया,
बुखार ने तोड़ा है बदन को इतना,
पैरासिटामोल की दुकान दे गया।

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5 APR 2017 AT 13:38

पैगाम भेज रहे हैं मर्द, 'तलाक़ तलाक़ तलाक़',

औरतों की क्या इतनी ही रह गयी है औक़ात?

हुकूमत, अब तो सुन लो ज़रा बीवियों की बात,

ज़्यादा ताक़त देकर उनको, सुधारो ये हालात।

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6 APR 2017 AT 13:23

"चलो चलें देखें मूवी बोरिंग सी कोई हम",
मुझको कॉल करके वो ये बात कहती है।
मैंने हैराँ होकर पूछा "क्या बोलती तुम?"
बोला उसने "तुम्हें क्या वहाँ फ़िल्म देखनी है?"


मैं फिर मुस्कुरा दिया।

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3 APR 2017 AT 18:43

(एक छोटे बच्चे की नज़रों से)

इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ,
चीनी लेकर चलती होंगी तार पे कुछ चीटियाँ।
गिन कर उनको मैं, फिरसे कमरे की ओर देखूँगा,
"क्यों नहीं माँ आयीं अभी तक", बस यही फिर सोचूंगा।
माँ अपनी चुन्नी को सर पर लेके बाहर आएँगी,
कीमती कुछ आंसुओं को गालों से हटाएंगी।
रोशनी जो चाँद की उन चोटों को चमकाएगी,
लाल उंगलियाँ चेहरे पे माँ के नजर आ जाएँगी।
मुझको समझ ना आएगा, ये घाव कहाँ से आए हैं।
"कमरे में तो पापा ही थे, फिर क्यों माँ घबराए है"?
तोड़ रोटियों को, इक टुकड़ा मुझको वो खिलाएँगी।
आज नहीं तंग करूंगा उसको, क्या माँ खुश हो जाएँगी?

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4 FEB 2017 AT 13:43

Alone we came,
Alone we'll go,
Alone this game,
Alone we'll know.

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7 APR 2017 AT 13:47

अपने होठों को कुछ इस क़दर वो सी गया,
दुखों के जाम का हर एक घूँट पी गया।
नापा ना कभी अश्कों ने रास्ता उन आँखों का,
बिना जिनके भी वो हर बार हंस के जी गया।

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4 APR 2017 AT 13:40

क्षीर सागर का मंथन हलाहल को उपजाये
प्राणघातक विष ऐसा, ब्रह्मांड भी जल जाए
देवता और दैत्य जो फिर हो गए निस्सहाय
शिव ने धरा कंठ में विष, नीलकंठ कहलाए।

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19 APR 2017 AT 13:07

कभी जीत जाती है मुझसे, कभी हार जाती है,
दूर कभी जाके मुझसे फिर पास भी आ जाती है।
परछाई है मेरी, साहब, डरती बहुत अँधेरे से,
देख उसे, घबराकर, मुझको छोड़ चली जाती है।

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