रिश्ते भी इस दौर के कुछ यूँ हुए अजीब,
देते हैं वो ही धोका जो हैं दिल के करीब,
मिलते हैं इस दौर में एहल-ए-वफ़ा भी कम,
करते हैं एक दूसरे से शिकवे गिले भी कम..
यूं तो अपने दर्द में सभी रंजीदा और उदास हैं,
रिश्तों में इश्क़ के हो गयी है रस्म-वफ़ा भी कम,
उफ, किन रास्तों पे लायी है ये आवारगी हमें,
फिर भी घर से न हो सका रिश्ता ज़रा भी कम
फुरसत भी कम मिली हमें औरों के दर्द से..
यूँ ही गुज़री ज़िन्दगी, खुद से मिले भी कम,
हमेशा दिल को दुखाते है हर मोड़ पे वो ही,
होती नहीं जिनसे मोहब्बत कभी भी कम ।।
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