क्या हम आज़ाद हुए?
रिहा होकर हम फिर से क़ैदी बन कर रह गए,
ग़ैरों के हाथों की कटपुतली बन कर रह गए।
जुनून तो था कुछ कर के दिखाने का दुनिया को,
पर 'आजिज़ी की चक्की में युंही पिस कर रह गए।
वतन को जगमगाने का जज़्बा बहुत था मगर,
रौशनी फैलाने में ख़ुद ही बुझ कर रह गए।
तरक़्क़ी के नाम पर ता'मीरात तो बहुत हुईं
जेबें भरी सेटों की, हम हाथ मल कर रह गए।
सत्तर गया सात गया, हासिल-ए-बोल कुछ न हुआ,
पहले जितना अन्दर थे, कुछ और दब कर रह गए।
लहराते हैं झंडो, आज़ादी के नग़मे भी गाते हैं,
ज़रा गौर कर के देखो हम कहां आ कर रह गए।
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