खुली किताब है वो,
पर कोई भी एक अखर पढ़ ना पाए,
पढ़ भी जाए कोई दो शब्द अगर,
एक पहेली मैं वो उलझ जाए ,
लाख कोशिश करे सब भूजे को,
पर हर मोड़ पर और खो जाए,
पढ़ इसकी किताब को भी सब बेखबर रह जाए,
समझ गए जो तुम अगर,
तो ये तुम्हारा दिल ले जाए,
खुली किताब है वो,
जो पढ़े उसका हिस्सा बन जाए ।
- अदिति शर्मा
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