(एक छोटे बच्चे की नज़रों से)
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ,
चीनी लेकर चलती होंगी तार पे कुछ चीटियाँ।
गिन कर उनको मैं, फिरसे कमरे की ओर देखूँगा,
"क्यों नहीं माँ आयीं अभी तक", बस यही फिर सोचूंगा।
माँ अपनी चुन्नी को सर पर लेके बाहर आएँगी,
कीमती कुछ आंसुओं को गालों से हटाएंगी।
रोशनी जो चाँद की उन चोटों को चमकाएगी,
लाल उंगलियाँ चेहरे पे माँ के नजर आ जाएँगी।
मुझको समझ ना आएगा, ये घाव कहाँ से आए हैं।
"कमरे में तो पापा ही थे, फिर क्यों माँ घबराए है"?
तोड़ रोटियों को, इक टुकड़ा मुझको वो खिलाएँगी।
आज नहीं तंग करूंगा उसको, क्या माँ खुश हो जाएँगी?
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