हम कैदी अपनी इच्छाओं के रह जाते हैं इन में ही सिमटकर। पा ले पार अगर इन से। तो रोक न पाए कोई दीवार। सुख संसाधन की चाहत में भूल जाते है त्याग बलिदान। ख्वाब तो देखे बड़े बड़े और करते समय दिखता है बस खुद का ही आराम। हम कैदी अपनी इच्छाओं के.....
सौंदर्य सदैव ही मुझे छलता रहा कैसा भी रहा हो जब-जब उसके प्रति आकर्षित हुआ मुझे दुःख ही प्राप्त हुआ जैसे मैं गुलाब की ओर गया मुझे सदैव चुभे काँटे मधु की ओर जब भी गया मधुमक्खियों ने काटे अंततः यही याद आता है- 'इच्छाएं ही सभी दुःखों का मूल कारण हैं'