.....ये उन दिनों की बात है.....
ये उन दिनों की बात है
जब तेरे नाम को मैं अपने मुट्ठी में छूपा कर सोया करती थी,
शहरो की दुरी और दिलो की नज़दीकी
का फर्क भूलने के खातिर
कुछ शायरियां लिख दिया करती थी,
याद है मुझे अभी भी जब मैं तेरे लिए
खुले आँखों से हज़ारो सपने संजोया करती थी
ये उन दिनों की बात है
जब मैं तेरी तस्वीरो से बाते किया करती थी,
ये उन्ही दिनों की बात है
जब मैं तुझसे बेइन्तहा मोह्हबत किया करती थी।
मै जानती हूँ आज भी की उसको खबर नही है
इस बचकानी मोह्हबत की
पर इस छोटी सी ख़ुशी को जीने के लिए
मैं अक्सर
उन्ही दिनों में जी लिया करती हूँ
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