मैं दर्द से कईं अधिक प्यार भी तो देती हूं पर अफसोस कि इस जहां में लोग कोसना पसंद करते हैं दुख पाते हैं खुद, अपनी ही करतूतों से फिर आकर ऐ "हर्ष" वे मासूमों के कान भरते हैं
उसकी हर एक याद को इस कदर मिटा कर आया हूँ, कि उसके दिए खतों को पानी मे बहा कर आया हूँ, और कोई पढ़ न ले उन्हें पानी से बाहर निकालकर, इसलिए मैं उस पानी में भी आग लगाकर आया हूँ।
चाहे कितना भी दलदल हो, पैर जमाये रखना, हाथ भले छोटे ही क्यों न हो, हाथ उठाये रखना, कौन कहता है कि छलनी में पानी नही टिकता, तुम बस बर्फ जमने तक, हौसला बनाये रखना।
तुम तो कहती थी, कि अब ना होगी मोहब्बत तुमसे, फिर आज तुम्हे ये इश्क़ का बुखार कैसे आया, जानेमन! शर्माओ मत, अब सच सच बता भी दो, तुम्हे आज अचानक मुझ पर प्यार कैसे आया ?