रिवायतें तेरे लिए मैं निभाती रही तू कुर्बत कहीं और बढाता गया सहर तेरे लिए मैं जागती रही तू कमर किसी और रात का बन गया कहर तेरा मैं सहती रही तू तबस्सुम किसी और होंठ का बन गया मैं तेरे लिए चमन बन बैठी रही तू परिंदा बन फलक में उड़ गया
तू जिस्म से जोड़ता है मेरे प्यार को तुझे क्या पता नज़रों से इश्क़ क्या होता है.. मैं रूह से नजमें बनाती हूँ तेरे लिए तू दर्द बता कर चैन की नींद सोता है... सारा ज़माना छोड़ दिया मैंने इक तेरे लिए फिर भी मुझे बेवफा कहके तू रोता है..!!
पहले ये तन्हाई हसाने का जिम्मा रखती थी पहले लोग महफ़िल जमाकर हंसा करते थे पर अब वो सुलूक नहीं अब वो करार नहीं है अब महफ़िल में लोग रुलाते है अक्सर यहां भी और तन्हाई भी हमें खुलकर रुलाने लगी