चाहता तो बहुत कुछ कर लेता मैं,
चाहत ही न हुई तो बात कुछ ओर है।
तुझे अपनाना चाहा था मैंने दिल से,
तु न माना तो बात कुछ ओर है।
बाग मैं फूल ओर भी थे,
किसी पे दिल न आया तो बात कुछ ओर है।
मैं तेरी शख्सियत पे मरता था,
तू मुझे समझ न पाया तो बात कुछ ओर है।
मैं तेरी खामियों को नज़रअंदाज़ करता था,
तु मेरी खूबियों को न पढ़ पाया तो बात कुछ ओर है।
मैं अक्सर रात के अंधेरे में तुझे महसूस करता था,
तू रोशनी में मुझे देखकर पलट गया तो बात कुछ ओर है।
यूँ तो मैं अपने लक्ष्य की ओर ही जा रहा था,
तुझे देखकर भटक गया तो बात कुछ ओर है ।
मैं तुझे अपनों में गिनता था,
तू मुझसे दुश्मनी कर बैठा तो बात कुछ ओर है ।
मैं तुझमें चाॅदनी की परछाई देखता था,
मैं आकाश की तरह तुझे अपने आगोश में नहीं ले पाया तो बात कुछ ओर है।
चाहता तो बहुत कुछ कर लेता मैं,
चाहत ही न हुई तो बात कुछ ओर है।
~©️ÂÅĶ§H✍(P.2/2019)
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