मुसिन क़फ़स में, सुकुनों का ज़िक्र ए दवाम है खस्ताहाल छत ये गोया राहतों का इंतज़ाम है शिकस्ता सी दीवारों का आफ़ियत सा काम है इनायत ए खुल्द मानों मेरा मुफ़लिस मक़ाम है
Home is where I can be me; Where everyone knows-- The history that shaped me; The future that drives me; and The present that holds me. Without ill motives from family-- I can, safely, be me.
देखा है लोगों को बदलते परिधान बदलते ही शहर, पर मुझ पर ना जाने क्यों कोई असर ना डाल पाया ये शहर। शायद लोगों में वो हिम्मत ना थी मुझे बदलने की या मैंने नहीं चाहा, या मेरी चाहत थी सुनने की उनसे "आप रहती हैं यहाँ, लेकिन यहाँ से हैं नहीं मगर।"
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