कई सालों से मैंने कोई त्यौहार नहीं देखा हाँ देखा है मैंने खुद को उस अंधेरे कमरे में .. मैंने एक वक्त से वो जलता दिया नहीं देखा हाँ देखा है मैंने यहां पर हर पल बदलते लोगों को .. इतना तो मैंने रंगों को बदलते नहीं देखा हाँ देखा है मैंने खुद को रोते उस कमरे में .. मैंने बहुत वक्त से खुशियों का बाजार नहीं देखा हाँ देखा है मैंने हर राहों पर खुद को चलते .. मैंने कभी भी किसी को खुद के साथ चलते नहीं देखा हर साल की तरह इस बार भी अपने गमों के साथ ही खेल लेंगे ll