तुम्हारे जज्बातों की शक्सियत अब जैसे मुझे कई बिखरे हुए गेंदों समान लगने लगी है मेरा स्नेह जैसे किसी डोर समान तुम्हे जो कस के बटोरना चाहूं खुदमे तो लगता है घुट के बिखर जाओगे जो ढील देदू अपने प्रेम में तो लगता है रूठ के बिखर जाओगे
माना कि तुम्हें किसी के साथ की ज़रूरत नहीं, हमसफ़र नहीं तो ना सही, हमराह बना लो मुझे। देखो मेरे इश्क़ की ऐसी भी आज़माइश ना करो, साथ नहीं तो ना सही, अपने पीछे आने दो मुझे।
इक मुसाफ़िर की तरह तू मुझसे मिल तू अंजान सा मुझसे मेरे जज्बातों से मैं रुबरु तेरे हर इक अल्फाज़ो से। तू मुसाफ़िर ही सही, और मेरी कोई मंज़िल ही नहीं सफ़र में तो है खुद से किये कुछ वादे बेगाने से। है रास्तों के मुसाफ़िर हम कुछ जाने पहचाने से कुछ दीवाने से।
ख़्वाहिशों का मकाँ कुछ यूँ ढहा, ना उम्मीदें रहीं और ना ही हौंसला रहा। दिल उठ गया हमारा इस ज़माने से, ना ही ये रहने लायक़ और ना ही क़ाबिले बर्दाश्त रहा।