QUOTES ON #HINDISHORTSTORY

#hindishortstory quotes

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10 APR 2020 AT 7:01

लड़का - क्या तुम्हें कहानियाँ पसंद हैं ?
लड़की - हाँ
लड़का - तो कौन - कौन सी पढ़ीं हैं तुमने ?
लड़की - मुझे पढ़ने का शौक नहीं, पर हाँ देखने और सुनने
का ज़रूर है | आजकल उसका भी time नहीं
मिलता |
लड़का - ओह !
लड़की - तुम पढ़ते हो क्या ?
लड़का - हाँ
(कुछ पल रुक के) क्या तुम सुनना चाहोगी ?
लड़की - बिल्कुल !
लड़का - डन ! फ़िर आज से मैं जो भी पढू़ँगा, तुम्हें ज़रूर
सुनाऊँगा ।

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6 NOV 2020 AT 18:14

आँखें

उसकी आँखें, भीड़ में जो कहीं छुपी हुईं थीं, एकटक मुझे ही ढूँढ रहीं थीं । पर नजरें मिलने पे, मानो सहम सी गयीं थीं । संकोच कर रही थीं , उस भीड़ से घबराते हुए , अपने अंदर उठते उफान को छुपा रहीं थीं। जैसे कोई छोटा बच्चा, मेहमान के घर जाने पर मिठाइयों को बड़ी आस लगाये देखता है । किंतु वही मिष्ठान उसे पेश करने पर, दूसरों के सामने अपनी छवि की लाज बचाने हेतु ,सकुचा भी जाता है ।

थोड़ा सा मुस्कराते हुए, शर्माते हुए, फिर वो पलकें उठीं थीं । मन के बाँध को तोड़ते हुए, वो लौट मेरे पास ही आ रहीं थीं। जैसे बच्चा तर्क वितर्क में समय नष्ट ना करते हुए, आग्रह पे मिठाई उठा ही लेता है। उसकी नजरें भी मेरी नज़रों का सलाम लेना चाहतीं थीं , या बस चुपचाप मुझे निहारना । मानो जैसे कुछ सवाल कर रहीं हों, या जवाब की आशा । सहसा मिलने के वादे चाह रहीं हों, या साथ निभाने के इरादे ।

हाँ.....उसकी आँखें, उसके जज़्बात मुझे बता रहीं थीं और मेरी आँखों से बतिया रहीं थीं ।

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4 MAY 2020 AT 14:25

बीस बरस हो गये आशा देवी के बेटे को गाँव छोडे़, पिछले बीस बरस से उसकी आँखें एक उम्मीद में पथरा गयी।
शाम ढ़लते ही वह खिड़की के पास खडी़ होकर सबसे पूछती थी, कि "भैय्या सुनों मुम्ब़ई वाली ट्रेन आई या नहीं" सामने से जवाब आता था,
"अम्मा ट्रेन तो कबकी आ चुकी"
आज भी बेटा नहीं आया, किसी काम में फंस गया होगा,आखि़रकार शहर का बडा़ डाक्टर जो है।
यह सोचकर आशा अपनी पुरानी यादों में खो जाती है,किस प्रकार पति के जाने के बाद
अकेली मेहनत,मज़दूरी करके बेटे आकाश को इसलिए डाक्टर बनाया था कि गाँव में रहकर लोगों का इलाज करेगा ,क्योंकि आकाश के पिता का देहांत गाँव में डाक्टर के न होने कारण इलाज के अभाव में हुआ था।
यह सोचतें-सोचतें आशा बेहोश हो जाती है,इतने में पास में रहने वाला मुन्ना सामान लेकर आता है। अम्मा देखों में सारा सामान लेकर आ गया।भैय्या का फोन आया था,कल शाम ट्रेन आ रहें हैं। भाभी और बच्चें भी आ रहें हैं आपका बीस बरस का सपना पूरा होने जा रहा हैं।
अम्मा की सांसे उखड़ चुकी थी,लेकिन बेटे के आने की खु़शी उनके मुख पर
लालिमा की तरह दहक़ रही थी।

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4 MAY 2020 AT 12:26

"परेशान हो गया हूँ इस रोज़ रोज़ की झंझट से" गुस्से से लाल होते हुए रवि अपने घर से आफिस के लिए निकल गया ! रास्ते मे माँ की ममता और बीवी के आंसू के दलदल में फंसता हुआ रवि अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था ! कैसे उसकी पिता की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसकी मां के कंधों पर आ गयी थी ,कैसे उसकी माँ ने दूसरो के घर काम करके अपना घर चलाया था ,और रवि को इस काबिल बनाया था कि वो एक बड़ी कंपनी का CEO बन पाया..! और आज की स्थिति ऐसी है कि उसकी पत्नी चाहती है कि उनकी मां को वृद्धाश्रम भेजा जाए ! आज वो माँ और अपनी बीवी के बीच फंस सा गया था ! इन्ही सब उलझनों के बीच रास्ते मे रवि ने कुछ बच्चो को देखा , जो रास्ते मे भीख मांग रहे थे. उन्हें देखकर रवि को ख्याल आया कि उसकी भी यही हालत होती अगर उसकी माँ उसके लिए ये सब ना करती.!
अब वो समझ चुका था कि उसे क्या करना है !
वास्तव में सड़क पर छोटे बच्चे उसको बहुत कुछ सिखा गए..❣️ समाप्त❤️
- अभिषेक डंगवाल.❣️

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4 MAY 2020 AT 12:41


# माँ का अनोखा प्यार #

माँ, बहुत अनुशासन-प्रिय थी। इसलिए हम भाई-बहन, उनसे बहुत डरते थे। एक बार खेलते- खेलते , छोटी बहन आंगन से नीचे गिर गई और दाएं हाथ में चोट लग गई।खाना खाते समय,बहन बाएं हाथ से खाना खाने लगी,तो मां ने कारण पूछा। मैंने कहा कि हल्की खरोंच है।पता नहीं मां को कैसे, अनहोनी का एहसास हो जाता था !उन्होंने देखा तो हाथ में सूजन थी। तुरंत मां उसे लेकर पैंतीस किलोमीटर दूर,हास्पिटल ले जाने लगी। पड़ोस के चाचाजी बोले, हल्की चोट है। घूमने का मन हो रहा हो,तो शौक़ से जाओ ।मगर मां को हड्डी टूटने का शक था,जो सही साबित हुआ।

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5 JUL 2020 AT 15:07

आज आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन तथागत बुद्ध के
जीवन की चार महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई थी,













इसलिए यह दिन बौद्ध अनुयाइयों
के लिए बहुत अहम हैं...

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7 JUL 2020 AT 18:15

प्रेरक प्रसंग - 3









एक किसान की भी ये समस्याएं ...
"सभी का जीवन परिवर्तित कर सकती हैं।"

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22 AUG 2020 AT 10:57

प्रेरक प्रसंग- 6







तीन गांठें

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5 MAY 2020 AT 19:36

माँ,अस्पताल के बिस्तर पर,सो रहीं थीं।वरदान,बाकी पैसों के जुगाड़ में था।तभी नज़र,माँ की,सोने की,चूड़ियों पर पड़ी।पिताजी ने बनवाई थी,उसके जन्म पर।माँ ने,कभी उतारी नहीं,न पिता के रहते,न बाद।
जागने पर,सूनी कलाईयाँ अनदेखी कर,बोलीं,”बस तुम्हारा ऑपरेशन अच्छे से हो जाए।मेरी किडनी,तुमसे मैच हो गई,चैन मिला “।
अपलक माँ को देखता रहा।श्राप था वो,नाम के विपरीत।जिसमें पैसे लगाए,डूबते गए।इसी दुख में,पीने लगा।उसका हाल देख,पिता चल बसे।और आज तो उनकी,आख़री निशानी भी,बेच आया।
निश्चल माँ का,अनोखा प्यार,कहाँ समझ पाया वो!!

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2 JUL 2020 AT 14:23

प्रेरक प्रसंग - 1






अमृत की खेती...

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