जुठे इंसान सच से वाकिफ़ होते हैं,
उसे अपनी छवि का ज्ञान होता है,
उसकी हालचाल
उसका लहज़ा
उसके फ़ायदे
उसके गेरफायदे
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सब जानते हुए भी,
एक मुजरिम मजबूरी में जुठ बोलता है,
क्योकि उसे पता होता है कि
सच का परिणाम मौत है।
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वो ऐसा सोचता है कि जुठ हमे बचा लेगा,
वो नही जानता की वो जुठ बोल के,
एक और बड़ा गुनाह कर रहा है,
जिसकी सज़ा मौत से परे होती है।
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