प्रेम को बिहारी ,
नदंलाल, यार ग्वालन को ।
व्रज का बसइय्या सखी,
विहार कंहाँ करता है ।।
गोपियाँ कन्हाई कहे,
मैय्या कहे माखनचोर ।
कौन सा पुकारूँ नाम,
का कहे सुनता है ।।
जमुना को नीर कहे,
झुक के कदम की डाल ।
गोवर्धन विशाल कहे,
पुष्प कुंज व्रज के लाल ।।
मन के झुकाए,
और प्रेम के लगावे सो
चला आये धावत वो,
चितवन में रमता है ।।
गोपियन सी प्रीत भरो,
मन वृंदा गीत करो
प्रेम दधि लगाये हाँथ,
गले लग जाता है ।।
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