चल रहा प्रचंड है, आज के बिसात पे।।
दिख रहा अखंड है, सौभाग्य के क़िताब से।।
क्यों करे घमंड है, समय के विकास पे।।
ले चलो समस्त को, उत्कर्ष के अमिय पे।।
बदल रहा प्रारब्ध है, दीवार सी उद्विग्न पे।।
हुए लहू-लुहान हैं, राह की दुसाध्य से।।
भुगतना कोहराम है, उज्र की आवाज़ से।।
दिख रहा भविष्य है, संघर्ष की समग्र से।।
चल रहा प्रचंड है..............
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