QUOTES ON #HINDIKAVITA

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6 JUL 2019 AT 11:17

अरमान है
देखनी है एक सुबह,कनेर सी
पीले रंग की पाजेब पहने
उतरी हो धीरे-धीरे नभ से
नाम,जाति,धर्म से परे
डाले एक सी किरण
सब की खिड़की पर
देखनी है
अरमान है
एक सुबह कनेर सी।

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19 SEP 2020 AT 20:24

चल रहा प्रचंड है, आज के बिसात पे।।
दिख रहा अखंड है, सौभाग्य के क़िताब से।।
क्यों करे घमंड है, समय के विकास पे।।
ले चलो समस्त को, उत्कर्ष के अमिय पे।।
बदल रहा प्रारब्ध है, दीवार सी उद्विग्न पे।।
हुए लहू-लुहान हैं, राह की दुसाध्य से।।
भुगतना कोहराम है, उज्र की आवाज़ से।।
दिख रहा भविष्य है, संघर्ष की समग्र से।।
चल रहा प्रचंड है..............

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13 MAY 2019 AT 20:06

मुँह फेरकर जाने वाले
बोलो,कहाँ तुम्हें है जाना ?
क्यों इतने मायूस भला तुम
देख रहे हो पथ अनजाना ?
भाग रहे हो किस बंधन से ?
कौन सा सपना टूट गया है ?
जीवन पथ पर चलते-चलते
कोई अपना रूठ गया है ?
कितना भी हो दुष्कर यह क्षण
पर जीवन का यही मर्म है
कहो, पलायन करने से भी
बड़ा, यहाँ कोई अधर्म है ?
नहीं पुकारे तुमको कोई
तब ख़ुद को आवाज़ लगाना
मुँह फेरकर जाने वाले
पुनः लौट तुम घर को जाना

© अनुपमा विन्ध्यवासिनी

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23 MAY 2021 AT 13:09

।।गा तू वंदेमातरम।।

कृष्ण का तू चक्र धर
पाप का तू काल बन
धर्म की लहरा ध्वजा
अधर्म का संहार कर

पूरी कविता अनुशीर्षक
👇में पढ़े👇

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24 NOV 2020 AT 15:36

तू सूरज की तरह बन ना कि तारे की तरह।
नियम से पक्का बन ना कि सारे की तरह।

मौसम की तरह लोगों के नज़रिये बदल जाते हैं,
तू चल अपनी चाल ना चल ज़माने की तरह।

बादल मुसीबत के बहुत आते हैं इस सफ़र में,
तू प्रकाश की तरह बन ना कि छाते की तरह।

तुझको समझने वाला कोई नहीं मिलेगा यहां,
अकेले ही पकना है किसी मीठे फल की तरह।

सही ग़लत कोई नहीं बताता ख़ुद समझना है,
ध्यान से चल तू यहां कांटे है जंगल की तरह।

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20 MAY 2020 AT 21:15

गहरी तन्हाझील सी नजर आती है तेरी आंखे ,
तू लाख छुपाये पर सारा राज बताती है तेरी आंखे,

है छेड़ती जब हवा तेरी जुल्फो को अपना समझ कर ,
छुप जाती है घटाओं (जुल्फ) मे शर्माकर तेरी आंखे ,

आ जाती है तेरे चेहरे पर भी वो नूर की रौनक ,
आइने मे जो तुझे प्यार से देखे तेरी आंखे,

बेखौफ़ रहता है तेरी पलको से लिपट के ये काजल ,
जैसे हर बुरी नजर से उसे बचाती है तेरी आंखे,

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💐💐💐❤️❤️❤️🌹🌹🌹

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31 OCT 2020 AT 0:38

मत कहो के प्यार है मुझसे
इस भ्रम को मनमे रहने दो
न बंधन रिश्ते का बांधो,
न रस्मो रिवाज़ मे ढलने दो।
प्रेम अब स्वयंप्रकाशित है
तप्त ये सूरज जैसा है,
शब्दों मे जाहीर करके तुम
न इसका मोम पिघलने दो।
ये अनकहा प्रेम जो है
अभी ये परिपूर्ण सा है,
दिखावा व्यर्थ खर्चा है
न इसका मूल्य बदलने दो।
प्रेम इक अथांग सागर है
थोडे संकुचित से है हम,
न इसकी गहराई नापो
इसे निरंतर बहने दो।
©निलम

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1 JUN 2021 AT 9:55

जिसको पाया ही नहीं
उसको खोने का डर कैसा,

उससे बिछड़कर मेरे चेहरे पर असर कैसा?

ना जीने लायक़ छोड़ा
ना मरने लायक़ छोड़ा
उसने दिया ज़हर कैसा?

वो छोड़ गया मुझपर टूटा
क़हर जैसा

जिसको पाया ही नहीं
उसको खोने का डर कैसा?

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27 APR 2020 AT 16:38

Bhale woh badal gye hain,lekin hum nhai badlenge,
Kyunki mohabbat humare liye koi khel nhai,
Jo har roj kisi aur ke dil ke sath khelenge...

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