QUOTES ON #HINDI_KAVITA

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20 APR 2021 AT 19:27

"प्रेम".....

मिथ्यारहित "प्रेम" का अस्तित्व निर्भर है
और वर्तमान में सम्मिलित है.....,,

दो दैवीय आत्माओं का मिलन ,
अंतःकरण का निश्छल रिश्ता ,
पुष्प रूपी कोमल भावों का
प्रेमी के चरणों पर निश्वार्थ अर्पण ,
मन का साम्य दर्पण ,
अहम्, छल, कपट और ,
मिथ्या का तर्पण ,
हृदय का निरपेक्ष और अथाह समर्पण ,,,

"
"
इन सब के साथ अंत में
विरह की वेदना।।

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20 MAY 2018 AT 23:09

मिट्टी का तन , अग्नि वचन
आंसू बंधन निरखे मेरा मन
त्याज्य नही हूँ , ब्याहता हूँ
साक्ष्य हैं बस क्षण कुछ मौन

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21 JAN 2018 AT 8:29

शुद्ध विशुद्ध परिपाटी परिपूर्ण हूँ मैं
त्याज्य नही त्यज्यता से अवतीर्ण हूँ मैं

घोर उदासी में उल्लास से पूर्ण हूँ मैं
कुलीन कुल की नीव जीर्ण शीर्ण हूँ मैं

धार दो धीर धरा सी धैर्य पूर्ण हूँ मैं
प्राण न्योछावर करूँ वो वीर कर्ण हूँ मैं

अविरल प्रवाहित सरिता भावपूर्ण हूँ मैं
गरलसुधा निज जीवन की साध्य अर्पण हूँ मैं

मानवता में मानव मात्र का तर्पण हूँ मैं
चिनका चिनका दर्प तुम्हारा करूँ वो दर्पण हूँ मैं

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31 MAY 2018 AT 20:57

अनादि अनन्त कराल है
भुजंग कंठ विकराल है
विनाश को प्रशस्त आज महाकाल है

मस्तक विराजे चन्द्र है
अंतिम आहुति क्रंद है
कैसा ये आज हाहाकार है
विनाश को प्रशस्त आज महाकाल है

दुर्जन श्रृंखला कैलाश है
श्मशान जिसका निवास है
भस्म धुलण्डी बिखरी हुई आज है
तम के प्रकाश में सत्व का ये प्रहार है
विनाश को प्रशस्त आज महाकाल है

तन्त्र तांडव का प्रारम्भ है
मरण में जीवन आरम्भ है
भागीरथ भी उद्दोलित हुई आज है
इति नही नवीन उदगार का उल्लास है
चहुँओर विजय की जय जयकार है
विनाश को प्रशस्त आज महाकाल है

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9 MAY 2018 AT 23:04

तोड़ न सके आंधी भी
देवदार सी अटल बनो
कलुषता सब धुल जाए
गंगा सी तुम निश्छल बनो

जननी हो तुम कैसा निषेध
श्रद्धा से करो गर्भगृह प्रवेश
तम सब मिट जाएंगे इक दिन
भाव भरो ,भाव हैं केवल सर्वेश

मृत्यु का भय नही सुता
अमृत पान कर अमर बनो
कर कठोर स्व का अस्तित्व,
चित्त विजयी तुम समर बनो

संबंधों का ताप सम्हालो
नेह बन्धन ये न टूटने पाए
थाम लेना आत्मा की चीत्कार
जब जब कदम तुम्हारे लड़खड़ाए

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24 MAR 2018 AT 0:05

जब बांध कर आंखों को प्रेम से
मैं उस पार क्षितिज के देखूंगी
क्या तब तुम आओगे
जब मैं उलट कर रात का कटोरा
तुम्हे आँचल के सलमा में पाउंगी
क्या तब तुम आओगे
प्रेम को प्रेम की परिसीमा से मुक्त कर
जब मैं तुम्हे अपनी अंतरात्मा कहूंगी
क्या तब तुम आओगे
जब ग़ज़ल को काफ़िया से इश्क़ होगा
और मुक़म्मल क़िताब नींद से जागेगी
क्या तब तुम आओगे
जब मैं धानी सरसो के पीले फूलों से
दुपट्टे को शगुन का हल्दी लगाउंगी
क्या तब तुम आओगे
जब मैं क्षितिज के टहटह लाल रंग को
अपनी मांग का अखंड सौभाग्य बनाउंगी
क्या तब तुम आओगे
रजनीगंधा कि मादकता को स्वांस में भरे
जब मैं इन सांसो की कस्तूरी महकाउंगी
क्या तब तुम आओगे
स्वाति कि पिपासा में "चकोर" सी व्यथित
जब मैं सर्वस्व स्व का तर्पण कर जाउंगी
सुनो न ! क्या तब तुम आओगे

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7 JUN 2018 AT 20:11

हिदायतों की गर्म सलाखों से
लगातार बनाया जा रहा था उन्हें
नर्म मुलायम मोम, जिससे
किसी भी आकार के
फ्रेम की बेड़ियों में
जकड़ा जा सके,,
(Full Read in caption)

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25 JUN 2018 AT 17:53

" दादी माँ की बातें "
क्या कहकर शुरुआत करूँ मैं, दादी माँ की बातों की।
नहीं भुला पाया हूँ अब तक, थपकी उनके हाथों की।।

हाथ था उनका सिर पर ऐसे, जैसे होती है छतरी।
बरसाती थीं नेह सभी पर, बनकर सावन की बदरी।।
आँगन की रौनक दादी थीं, घर की सजग सिपाही।
दरवाज़े पर उन्हें देखकर, शीश झुकाते राही।।
दादी माँ तो रहीं नहीं पर, अब भी यादें बातों की।। क्या कहकर...

दादी कहती बाँटो सबको प्रेम और अपनापन दो।
हरदम प्यासे को पानी दो और भूखे को भोजन दो।।
बैरी भी यदि घर में आए, बैर भूलकर हित करना।
बड़े प्यार से गले लगाना, कभी अनादर मत करना।।
सच सम्मानित होता जग में कद्र न झूठे ठाठों की।। क्या कहकर...

सबकी ऐसी ही दादी हों, जैसी मेरी थीं दादी।
होती रहे निरंतर बारिश, करुणा की आशीर्वादी।।
सच तो ये है इस दुनिया में दादी ममता की मूरत।
इनसे बढ़कर हो नहीं सकती किसी देवता की सूरत।।
आवश्यकता इनकी सेवा की और न पूजा पाठों की।। क्या कहकर...

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20 JUN 2017 AT 17:58

चाँद को है मुश्किल मनाना.. 😉

कविता in caption...

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एक ऐसा नग़मा सुनावो
की मे अपना गाम भूल जाऊँ
बिस्तर से उठ नही पाया
फ़िर मैं कैसे दफ्तर मे आया,
ऐ माया,, ऐ सब तेरा ही चाया
मैंने भी इतना पैसे कमाया
लेकिन तुम्हे कभी भी
सुख नही दे पाया,
भूल गयाता मै,
की मै तेरा क्या हूँ,
अभ तुमने मुझे एहसास दिलाया..!

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