नारी सृजनशील है।
वह जननी है।
जन्म देती है।
वंशवृद्धि करती है।
देवी स्वरूप पूजी जाती है।
घर की गृहशोभा कहलाती है।
फिर वही नारी रजस्वला होने पर,
घृणा की दृष्टि से भी देखी जाती है।
ये समाज नारी का आंकलन,
दोयम दर्जे पर करता है।
नारी के लिए दोहरे मापदंड,
स्थापित कर रखे हैं इस समाज ने।
समाज ही नहीं,स्वयं उसके घर-परिवार ने।
— % &अपेक्षा की जाती है कि विवाह के बाद,
वह तुरंत गर्भवती हो जाए।
कुलदीपक को जन्म दे,
य गुड़िया को गोद में खिलाए।
मासिक धर्म में सब उसे अपवित्र कहते हैं।
यदि रजोधर्म ही न आए तो उसे बांझ समझते हैं।
आखिर हम ये बात क्यों भूल जाते हैं।
मासिक धर्म से ही तो नारी में सृजन शक्ति आती है।
फिर मासिक धर्म में वही नारी,
अपवित्र क्यों कहलाती है ?— % &
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