तब नहीं, तो अब क्यूँ
ये रंज, ग़म, कसक क्यूँ
तब रंग तो कुछ और थे
फिर अब अलग-अलग क्यूँ
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थे मौके पे मौन तब,
तो अब चहल पहल क्यूँ
पत्थर रहा पिघल क्यूँ
तेवर रहा बदल क्यूँ
थे तब बड़े सख्त से, 'ज़रूर',
ये तब्दीली आज कल क्यूँ
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अफसोस क्यूँ, तड़प क्यूँ
अब होश क्यूँ, तलब क्यूँ
अब खुले ये लब क्यूँ
तब गए बेसबब क्यूँ
जब सब कुछ सही था,
तो फिर, ये सब क्यूँ !!!
~ स्वप्नेश भारद्वाज
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