थके थके से है कुछ इस कदर जिंदगी में, कि मंजिल तो सामने है पर पाने की हसरत गवा बैठे हैं.. और जिंदगी भी कुछ इस कदर खफा है मुझसे, कि मौत को भी खुद से जुदा कर बैठे है...
इबादत से ज़्यादा हिफाज़त पर यकीं करती हूँ, मन्नतों से ज़्यादा हसरतों पर यकीं करती हूँ।। कुछ यूँ गुम हो गई हूँ इस इश्क़ के पैगाम में की अब मज़हब से ज़्यादा मोहब्बत पर यकीं करती हूँ।।
हम कल भी अकेले थे और आज भी अकेले हैं हर वक्त इस जिंदगी में बस मुश्किलों के मेले हैं न कल किसी की जरूरत थी और न ही आज किसी की भी जरूरत है मरने से पहले एक बार खुद के लिए जी लूँ बस इतनी सी हसरत है