मैं त्याग हूँ समर्पण हूँ ममता की भोली सूरत हूँ झांको अपने ह्रदय कभी तो तुम्हारी ही मूरत में हूँ... कर जाते हो गंदा मुझे अपनी ही गंदी सोच से तुम लहू के हर कतरे में ज़रा गौर से देखो मैं ही तो हूँ... मैं मुहब़्बत हूँ इबादत हूँ हया में लिपटी शराफत भी हूँ इतिहास ग़वाह है जो छेड़ा मुझे तो कयामत भी मैं ही हूँ... मत समझो कमज़ोर मुझे कि मेरा कोई असितत्व नहीं हौसलों से दुनिया बदल दूं वो ज़ज्बा-ए-औरत भी हूँ... एक रोज़ का हमको मान नहीं हर रोज़ ही इज़्ज़त चाहिए दुनिया जहाँ की ख़्वाहिश नहीं नजरों में हिफ़ाज़त चाहिए