एक बार फिर तेरी शहादत बेकार जायेगी,
और सियासती दौर में संवेदनाएँ हार जायेंगी।
क्या हुआ जो तू शहीद हुआ,
तू तो मरने के लिए ही था!!
फिर चलेगी सियासत की यही लालफीताशाही,
फिर वही नीति नक्सली चलायी जायेगी।
फिर बातें होंगी कश्मीर की-पत्थरबाजों की,
फिर तुझे कोई सजा सुनाई जायेगी।
क्या हुआ जो तेरी माँ की चुनरी,
अश्कों से भीग जाएगी!
जिन कंधों पे झूले खूब बचपन में,
उन्हीं पर तेरी अंतिम सवारी जाएगी!
क्या हुआ जो राखी लिए बैठी बहना,
फिर न तेरी राह तकने जाएगी!
क्या हुआ जो संगिनी की,
सिन्दूरी माँग सूनी हो जाएगी!
क्या हुआ जो तेरी लाडो,
अब न गुड़िया लाने को कहेगी!
क्या हुआ जो बेटे की,
आस अधूरी रह जाएगी!
क्या हुआ जो तुझसे,
बिछड़ गया परिवार तेरा!
क्या हुआ जो बगिया का,
फूल मुरझा गया!!
चन्द दिन कुछ अश्क बहाये जायेंगे,
अखबारों के पहले पृष्ठ तेरे नाम किये जायेंगे,
कैण्डिल मार्चों का कुछ दौर चलाया जाएगा,
फिर वही काली चदरिया ओढ़ ली जाएगी!
और फिर सब कुछ भुला के,
कातिलों संग दावतों में रोटियाँ तोड़ी जायेंगी!!
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