हे हमराही, वो रंग कुछ अलग था,
जो था रंगा घुला उल्फ़त के,
रंगे बहार की फ़िजावो में कुछ यूं..
थे अल्फ़ाज इक़, थी धड़कन इक़,
वो करते हैं वाह वाह,
क्या थे रंग उल्फ़त के..
अब पढ़ते है शब्दों लफ्ज़ो को,
शब्द अल्फ़ाज समझ कर कुछ यूं,
हम दिल की आपबीती लिख आये,
कुछ यूं उन को समझ वो रंग पुराना,
वो रंग कुछ अलग था, वो हमनवा कुछ अलग था..✍🏼🐦
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