कोई ख़ास तस्वीर भी नहीं, कोई ऐसी एक बात भी नहीं याद तो रोज़ आती है पर ऐसी कोई तक़दीर ही नहीं जिसमें आप मेरी तस्वीर नहीं
आख़री बार की बात याद है उस दिन की पूरी तस्वीर याद है बोला था आपने साथ में खाओ क्या पता था ये आख़री मुलाक़ात है पिरो रखा है आज भी उस दिन को, जिस दिन आपने कहा बस “यही आख़री मुलाक़ात है”
बड़े बेईमान हैं मेरे पिता जब जब ज़िन्दगी की मुश्किलें मुझे घेर लेती हैं तो हिस्सेदार बन जाते हैं मेरी परेशानियों के और खुद का हिस्सा हमेशा ज्यादा रखते हैं हां , बड़े बेईमान हैं मेरे पिता। जब दिन खुशियों से भरा हो और रात दर्द से भरी तब भी खुद को झोंक देते हैं रात के अंधियारे में और मेरे नाम कर देते हैं सारा उजाला सच , बड़े बेईमान हैं मेरे पिता।