किसी का इतना होने लग गया था,
कि मैं ख़ुदसे ही खोने लग गया था..
वो मेरी बात पे शक कर रही थी,
मैं उसके शक पे रोने लग गया था..
सितम कई और भेजे मेरी तरफ उसने,
यादों में उन्हें भी संजोने लग गया था..
एक छुअन, इक बोसा, ज़ुल्फों को संवारना,
इश्क़ जैसा कुछ-कुछ होने लग गया था..
क्या ग़ज़ल थी, क्या बात कही थी साहब,
चन्द शेर मैं भी पिरोने लग गया था...
वो जब आई थी मुझको प्यार करने
मैं रोते-रोते सोने लग गया था....
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