ऐ ज़िंदगी मुझे ये बता कब तक और जीना है तुझे?
गर कोई दवा हो खुदा ए रहमत के पास जाने का तो पिला दे मुझे।
जीना मुहाल है,हर कदम पे एक सवाल है,
कैसे रहूं सांसे भी अब करने लगी बवाल हैं।
दर्द से और गम से तकलीफ़ नहीं मुझे,
फ़िर भी तू क्यों नहीं जीने देती, बोल ज़रा क्या तकलीफ़ है तुझे?
शिकवा किया ना कभी शिकायत किया,
खून के आंसू घुट घुट कर पिया,तब भी तो तूने जीने नहीं दिया।
पल पल को हंसना चाहा,
संग तेरे ऐ ज़िन्दगी आसमां में उड़ना चाहा।
जिधर तू चाही उस मोड़ पे तेरे संग चली,
जिस रंग में चाहा उस रंग में ढली।
लोगो के कई चेहरे मिले ना जानें कितनो की मै शिकार हुई,
टूटी मैं बिखरी मैं फ़िर भी ऐ ज़िंदगी मै ही क्यों गुनेहगार हुई?
सवाल भी नहीं करने देती,जवाब भी मांगती हैं,
बता ना ऐ ज़िन्दगी तू मुझसे क्या चाहती हैं?
ऐ ज़िन्दगी मुझे ये बता कब तक और जीना है तुझे,
कोई दवा हो ख़ुदा ऐ रहमत के पास जाने का तो पिला दे मुझे।
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