है कैद जिसमें ज़िंदगी मैं वो कफ़स का तार हूँ
रफीकों के करम से जो लूट चुका, वो दयार हूँ
तूने, कितना चाहा, प्यार किया, बेशुमार किया
पर मैं संभाल के न रख सका, तेरा गुनहगार हूँ
सुन तू बेवफ़ा नहीं मैं ही सदा करते गया जफ़ा
मैं तुझसे शर्मसार हूँ जान मैं खुद से शर्मसार हूँ
न गुल, न गुलबर्ग, कोई न शाख पर समर कोई
शजर है खुश्क बाग के अजब का इक बहार हूँ
अज़ीब मस'अला है, मेरी दास्तान भी अज़ीब है
कि, साहिल पे आके भी देख मैं बीच मझधार हूँ
माना हद से अपनी सोच के, न आर हूँ न पार हूँ
अब, चाहे जो हूँ जैसा हूँ, मैं तुम्हारा वही प्यार हूँ
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