ग़रीब होना गुनाह सा लगता है ,,,, के गरीब होना हमें गुनाह सा लगता है , अपने आगे खाई और पीछे कुआं सा लगता है ,,,, हम कहीं जाएं भी तो जाएं कैसे - पैसों ने रास्ता रोक के जो रखा है ।
"इश्क़ या गुनाह" जो जिस्म से है तो गुनाह है और जो रूह से है तो इश्क़ है, जो साथ तक ही है तो गुनाह है गर जो उसके साथ और बाद भी ताउम्र रहेगी तो इश्क़ हैं जो बस उसको चाहना और पाना ही मंजिल है तो गुनाह है लेकिन जो उसके लिए खुद को लुटाना और खो देने की मंजूरी है तो इश्क़ है जो बस तुम उसे अपना और सिर्फ अपना बनाना चाहते हो तो गुनाह है और अगर सिर्फ़ और सिर्फ उसके होना चाहते हो, चाहे उसकी चाहत कुछ भी हो तो इश्क़ है जो बस तुम अपनी सुनानी और मनानी चाहते हो ताउम्र तो गुनाह है तुम अपनी सौ मुस्कुराहट कुर्बान कर सकते हो तो यहिं हाँ यही इश्क़ है जानता हूँ मुश्किल ही नही नामुमकिन है, इसलिए तो ये इश्क़ हैं गुनाह नही और ये इसकी ख्वाहिश तो हर कोई करता है लेकिन खुद की आजमाइश नही