वो बचपन की दुनिया ही असल में परियों की दुनिया होती थी,
माँ गोद में उठा ले तो, जन्नत कदमो में होती थी,
माँ पर हक है सिर्फ़ मेरा,
इन चंद लफ़्ज़ों की वसीहत अनमोल होती थी,
वो माँ की गोद ही मुझको चारों धाम लगती थी,
दर्द सिमटते थे जिसके आंचल में,
जिसके चेहरे को देख मेरी सुबह होती थी,
वो बचपन की दुनिया भी क्या खूब होती थी...
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