तुम प्रकृति की उत्तम रचना, तुझसे धरा संवरती है,
धरा के हर स्फुटित कण कण,तुझसे ही निखरती है।
प्रफुल्लित हो वसंत कोकिला, राग मधुर गाती है,
तेरे रंग में रंगकर धरती , सबके मन को भाती है।
कृषक दुलारी हर मन प्यारी,तुझमें बसती खुशियां सारी,
आच्छादित तुझसे होकर धरती, लगती है न्यारी - न्यारी।
धरा सूर्य में शामिल होकर,अपना रंग बनाते हो,
सावन में पुलकित होकर,हर जगह छा जाते हो।
शब्दों से हो परे चिरंतन , कोटि कोटि गुण तुझमे है,
कुछ शब्दों की व्याख्या लेकर,लिखा जितना मुझमें है।
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